Media-mirchi:-कुछ चले थे,कुछ चल रहे और कुछ चलकर सिमट गये


दबंग की कही -
आज मीडिया मिर्ची के इस अंक में आप सभी पाठकों को पत्रकारिता जगत की कुछ झलक दिखाने का प्रयास करेंगे ।
तो सर्बप्रथम आप सभी पाठकों को दबंग का नमस्कार
आइये शुरू करते हैं - 
मित्रों पत्रकारिता इन दिनों ऐसी हो गयी है जैसे मानो हर नाकाम का यही मकाम है
आज हर बो नाकाम आदमी इस लाइन में आकर अपना मकाम ढूंढ रहा है जो शायद कहीं भी अपना निशान तक नहीं बना सका ,बो इस लाईन में अब सब कुछ पाने की आरजू लिए आ खड़ा है जबकि हकीकत तो बहुत अलग है यह (पत्रकारिता)किसी नाकाम का मकाम नहीं बल्कि एक लंबा रास्ता है जिसकी कोई मंजिल नहीं ।
जी हां यह बो पेशा है जहां त्याग सर्बोपरि है फिर चाहे वह अपनी ख़्वावीदा जिंदगी का हो या आरजु-ए चाह का 
लेकिन इस सब से अनजान व्यक्ति आज इस लाइन में अपना मकाम ढूंढ रहे हैं ,खैर अपन को क्या अगर मिल जाये तो अच्छा है भाई दबंग की दुआ आपके साथ है ।
लेकिन बीते बर्षो के अनुभव को आधार मान सोचा मुफ्त की सलाह तो दे ही दें ।
सो लिख डाला कि आज बिना किसी गुरुकुल या गुरु के इस पत्रकारिता जगत में स्वयं को सर्बोपरि मानकर चल रहे नवागंतुक, भाई पहले कुछ बर्ष किसी की छत्र छाया में बिताए होते ,बरिष्ट जनों से कुछ सीख लेते, अरे कुछ नहीं तो कुछ किताबें ही पड़ी होतीं और तो और इस खैमे को बारीकी से समझ तो लेते ।
फिर जाकर कुछ नया कर लेते तो शायद आप भी इस लायक होते कि स्वयं से स्थापित इस हौदे पर शोभायमान होते ,लेकिन आज जिस दौर में दौड़ लगा दी है उस दौर का तो आगाज भी यही और अंजाम भी यही है ।
कि कुछ चले थे,कुछ चल रहे और कुछ चलकर सिमट गये।
बांकी आप जानो|


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