दास्तान-ए-शहर, दबंग की कलम से-
शिवपुरी जिला सहित प्रदेश में अपनी पहचान बना चुके नगर परिषद क्षेत्र कोलारस के लिये आज यह प्रशंग लिखना जब अनिवार्य हो गया तब यहां का हर जरूरतमंद विकास की इबारत को गढते हुऐ देखे जा रहा है, और अब तो देखते-देखते हालात यहां तक आ पहुंचे कि चश्मे बाली दुकान का ग्राहक तक हो गया, लेकिन विकास की इस इबारत का हिस्सा न बन सका।
विगत वर्षों से लेकर आज तक भले ही नगर परिषद द्वारा नगर को विकसित बनाने के लिये हर संभव प्रयास किया गया है करोड़ों रूपये खर्च किये गये हैं और आज भी किये जा रहे हैं लेकिन इन सब में कुछ कार्य ऐसे भी थे जिनमें अगर इन जरूरतमंदों को स्थान मिल जाता तो आज बाकई में मेरा नगर विकसित हो जाता, लेकिन नहीं मिला, इसलिये आज नपा. द्वारा किया गया हर बो प्रयास तथा खर्च किया गया पैसा केबल और केबल जनप्रतिनिधियों,साहुकारों,तथा खास लागों के ही बिकास का परिचायक है आम लोग आज भी जस के तस हैं।
आज के कठिन दौर में बे सक्षम नहीं थे कि बड़े शहरों में जाकर उच्च शिक्षा ग्रहण कर लेते, बे सक्षम नहीं थे कि परिजनों की हालत को नजर अंदाज कर देते, बे सक्षम नहीं थे कि कुछ बनते या बना लेते,
सो साहब उन जरूरतमंदों ने अपने ही नगर में आपकी छत्र छाया में रहकर परिवार का भरण पोषण करने की ठान ली, लेकिन बो भी तो जब करते तब आपका सहियोग मिलता ब्यवस्था नहीं थी इतनी कि शहर में पूंजीपतियों के बीच बैठ जाते सो कोने में ही एक ठिकाना बना गुजारा करने लगे, लेकिन वह भी आपको रास न आया तो आप ने वहां से चलता कर दिया, इननेे जबरदस्ती की तो अपना बल भी दिखा दिया सो आपकी हां को हां मान ये फिर चल दिये।
और आपको यह मुद्दा मिल गया अब और ये न भटकें इसलिये आपने ब्यवस्था भी सोची और ऐलान भी कर दिया, आपके ऐलान से दिल को बड़ा सुकून मिला दिल बोला कि साहब आपने बड़ा एहसान कर दिया, इन सहित इनका परिवार भी आपको दुआऐं देने लगा, इनके टूटे हुऐ सपने अब पुनः नई नींद के साथ जुड़ने लगे थे इधर आप भी बिकास की इबारत गढ़ने लगे थे और बह दिन भी आया जब इन्हें आप विकसित बना देते, लेकिन आपके चाहने बालों की चिंता ने आपको बेईमान बना डाला, इनके सपनों में जान डालकर इन्हें बेजान बना डाला, ताक ता रहा में अब इन्हें भी मिलेगा लेकिन आपके चाहने बालों का कुनबा भी अधिक था सो न तो इन्हें मिला न मिला इनकी विरादरी को सब आप ही हजम कर गये इनके नाम से, आपका हर चाहने बाला यहां भिकारी बन बैठा और इनकी गैरत ने भी इन्हें साहुकार बना डाला , लेकिन यह दर्द कल भी था और आज भी है और हमेशा रहेगा कि-
काश यहाॅ ईमान का जरा भी किस्सा होता,
तो साहब आज यें भी इस विकास का हिस्सा होता
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