यूं तो प्रशासन निष्पक्ष रुप से चुनाव संपन्न कराने के लिए हमेशा से ही बड़ा फेरबदल करता आ रहा है हर बार चुनावी समय पर विभागीय सर्जरी की जाती है जिससे क्षेत्रीय विभागों में पदस्थ कर्मचारी किसी प्रकार से चुनाव को प्रभावित ना कर सकें ,लेकिन कोलारस तहसील के कर्मचारी इस प्रक्रिया से बाहर ही रहते हैं यह एक विचारणीय पहलू है?
हालांकि सर्जरी तो यहां भी होती है लेकिन यह केबल विभागीय मुखियाओं तक ही सीमित है कर्मचारियों पर इसका प्रभाव शून्य ही देखने को मिलता है, लेकिन यहां बताना लाजिमी होगा कि कोलारस तहसील में विगत कई वर्षों से जमे कर्मचारी भी चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं कोलारस एसडीएम कार्यालय में पदस्थ बाबू जिनके अभद्र व्यवहार और राजनीतिक पकड़ से जहां पूरा अमला भलीभांति परिचित है तो वही एक बाबूजी तो स्वयं को सीएम का रिश्तेदार भी बताते हैं और यही नहीं बल्कि पूर्व चुनावों में भी सत्ता पार्टी के नेताओं को सुविधाएं मुहैया कराने एवं आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन जैसे आरोप भी इन पर लगते रहे हैं।
ऐसे ही कई अन्य कई कर्मचारी भी कोलारस अनुविभाग में बर्षों से पदस्थ हैं जो राजनीतिक पहुच के बलबूते बिगत काफी बर्षों से एक ही स्थान पर डटे हुए हैं तथा चुनाव पर भी अपना प्रभाब रखते हैं ।
ऐसे में चुनाव की निष्पक्षता पर तो प्रश्न चिन्ह लगता ही है साथ ही यह भी एक बड़ा प्रश्न है कि इस सब के बाबजूद भी ऐसे कर्मचारियों को फेरबदल की प्रक्रिया से परे रखे जाने के पीछे आखिर कार कोन सी ऐसी बजह है जो इन्हें अभयदान दिलाती है ।
इसका जबाब तो प्रशासन ही दे सकता है?